بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
तक़दीर का दरवाज़ा खोलने वाला अमल
نَحْمَدُہُ وَ نُصَلّیِ عَلٰی رَسُولِہِ الْکَرِیْمْ اَمّا بَعْدْ
कभी-कभी इंसान बरसों तक इबादत और अज़कार करता है मगर हालात वही रहते हैं. ऐसे वक़्त में दिल चाहता है कि कोई ऐसा अमल मिल जाए जो रूह को हिला दे और तक़दीर का रुख़ मोड़ दे.
औलिया अल्लाह के पास वाक़ई कुछ ऐसे अमल और राज़ थे जो आम लोग कम जानते हैं. मैं तुम्हें उनमें से कुछ गहरी बातें बता देता हूँ:
1. ख़लवत (अकेलेपन का सफ़र)
औलिया कहते हैं कि जब हालात बंद हो जाएँ, तो इंसान लोगों से कम मिलकर अल्लाह के साथ तन्हाई तलाश करे.
-
एक वक़्त मुक़र्रर करो (जैसे आधी रात या तहज्जुद का वक़्त).
-
अंधेरे कमरे में या खुले आसमान के नीचे सिर्फ़ अल्लाह से बात करो.
-
दिल की हर तंगी, हर दर्द, हर सवाल, अल्फ़ाज़ में नहीं बल्कि आँसुओं में पेश करो.
हज़रत दाता गंजबख़्श (रह.) फ़रमाते हैं:
“आँसू वह ज़ुबान हैं जिसे अल्लाह कभी रद्द नहीं करता.”
2. ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ (मख़लूक़ की ख़िदमत)
औलिया का राज़ ये है कि जब दुआएँ क़बूल न हों तो अल्लाह की मख़लूक़ की ख़िदमत करो.
-
किसी भूखे को खाना खिलाना.
-
किसी बीमार की मुलाक़ात करना.
-
किसी यतीम की मदद करना.
हज़रत अली हज्वेरी (रह.) लिखते हैं:
“कभी-कभी एक मज़लूम के चेहरे पर मुस्कुराहट लाना वो काम कर देता है जो हज़ार सज्दे भी न कर पाएँ.”
3. सुकूत (ख़ामोशी का अमल)
औलिया अल्लाह के यहाँ ये राज़ मशहूर है:
-
जब हालात न बदलें, तो कम बोलो, कम सोचो, कम खाओ.
-
ज़्यादा सुनो और अल्लाह का नाम दिल ही दिल में बार-बार दोहराओ.
हज़रत जुनैद बग़दादी (रह.) कहते हैं:
“दिल का दरवाज़ा तब खुलता है जब ज़ुबान बंद हो और रूह अल्लाह के नाम का ज़िक्र करे.”
4. शुक्र का राज़
औलिया बताते हैं कि जब हालात बदलते न हों, तो शिकायत छोड़कर शुक्र की तरफ़ पलटो.
-
हर दिन तीन नेमतें गिनो और अल्लाह का शुक्र अदा करो.
-
शुक्र हालात को बदलने से पहले दिल को बदल देता है.
कुरआन में है: “अगर तुम शुक्र अदा करोगे तो मैं तुम्हें और दूँगा.” (इब्राहीम:7)
5. राज़-ए-औलिया: अपने लिए नहीं, औरों के लिए दुआ करो
औलिया अल्लाह ने पाया कि जब उन्होंने अपनी दुआ छोड़कर दूसरों के लिए दुआ माँगना शुरू किया, तब उनकी तक़दीर बदलने लगी.
-
किसी बीमार के लिए शिफ़ा माँगो.
-
किसी ग़रीब के लिए रिज़्क़ माँगो.
-
किसी परेशान इंसान के लिए राहत माँगो.
हदीस में है: “जब कोई मुसलमान अपने भाई के लिए ग़ैर-हाज़िरी में दुआ करता है, तो फ़रिश्ता कहता है: आमीन, और तेरे लिए भी वही.” (मुस्लिम)
ये सब औलिया के “ग़ैर-मामूली राज़” हैं — इबादत का ढंग बदलना, शुक्र और ख़ामोशी को अपना लेना, और सबसे अहम: दूसरों के लिए रो-रोकर दुआ करना.
अब में आप को तक़दीर की गिरह खोलने वाला अमल बता रहा हूँ, रोज़ाना के तीन (३) अमल है, दो (२) अमल सिर्फ हफ्ते में एक बार करने हैं, इस के अलावा कुछ रूहानी उसूल हैं.
तक़दीर की गिरह खोलने वाला अमल
रोज़ाना का अमल (Day Routine)
-
सुबह उठकर (फ़ज्र के बाद)
-
100 बार इस्तग़फ़ार:
أستغفر الله ربي من كل ذنب وأتوب إليه -
100 बार दरूद शरीफ़:
اللهم صل على محمد وعلى آل محمد
-
-
दिन के किसी भी वक़्त (बेहतर है तन्हाई में कोई भी एक वक़्त मुक़र्रर कर के)
-
दिल पर हाथ रखकर 300–500 बार:
لَا إِلٰهَ إِلَّا الله -
इसे आँखें बंद करके, दिल की तरफ़ तवज्जोह के साथ पढ़ो.
-
-
रात सोने से पहले
-
एक बार आयतुल कुर्सी और तीन बार सूरह इनशिराह (اَلَمْ نَشْرَحْ لَكَ صَدْرَكَ) पढ़कर अपने सीने पर दम करो.
-
दूसरों के लिए दुआ करो (जिन्हें मदद चाहिए, ख़ास कर ग़रीब, बीमार, मज़लूम).
-
हफ़्ते का ख़ास अमल (Weekly Practice)
-
तहज्जुद की रात (कम-से-कम हफ़्ते में एक बार)
-
2 रकअत नफ़्ल नमाज़ अल्लाह की रज़ा के लिए.
-
नमाज़ से फ़ारिग़ हो कर लम्बा सज्दा करके जितनी बार हो सके दुआ के मतलब पर तवज्जुह रख कर ये पढ़ो:
“या फ़त्ताहु, इफ्तह ली”
(ऐ दरवाज़े खोलने वाले, मेरे लिए खोल दे.) -
सज्दे के बाद अपने साथ किसी और के लिए भी दुआ करो.
-
-
ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ (कम-से-कम हफ़्ते में एक बार)
-
किसी ग़रीब को खाना खिलाना, या बीमार की अयादत करना, या किसी मज़लूम की मदद करना.
-
औलिया कहते हैं कि “ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ ही दरवाज़ा-ए-रहमत की चाबी है.”
-
रूहानी उसूल (Spiritual Rules)
-
ख़ामोशी: शक़ायत कम, शुक्र ज़्यादा.
-
शुक्र: हर दिन 3 नेमतें गिनकर अल्लाह का शुक्र करो.
-
तवक्कुल: अमल करो, लेकिन नतीजा अल्लाह पर छोड़ दो.
-
सच्चाई: ये अमल दिखावे के लिए नहीं, सिर्फ़ अल्लाह के लिए करो.
औलिया का वादा
-
सज्दे का अमल → तक़दीर की गिरह ढीली करता है.
-
कलिमा का वज़ीफ़ा → दिल का ताला खोल देता है.
-
ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ → रहमत का दरवाज़ा खोल देता है.
और जब दिल, तक़दीर और रहमत — तीनों दरवाज़े खुल जाएँ तो इंसान की ज़िन्दगी में वो बरकत उतरती है जो उसने सोची भी नहीं होती.
अल्लाह तआला हम तमाम की मुश्किलात को दूर फरमाए, और दुनिया व आख़िरत में हमारे लिए आसानियाँ फरमाए, आमीन!
गुज़ारिश है के (बशर्ते सहूलत) इस हक़ीर को भी अपनी दुआओं में याद फरमाएं.
جزاكم اللهُ خيرًا
अहक़र : सय्यिद अतीकुर्रहमान (غُفِرَ لَهُ)