Islamic Hindi Article : एक राजा की दूरदर्शिता : आगे की सोच

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Islamic Hindi Article : आगे की सोच

  किसी मुल्क़ में एक क़ानून था कि वो एक साल बाद अपना बादशाह बदल लेते। उस दिन जो भी सब से पहले शहर में दाख़िल होता तो उसे राजा चुन लेते और इससे पहले वाले राजा को एक बहुत ही ख़तरनाक और मीलों फैले जंगल के बीचों बीज छोड़ आते जहां बेचारा अगर दरिंदों से किसी तरह अपने आप को बचा लेता तो भूख-प्यास से मर जाता ।
ना जाने कितने ही बादशाह ऐसे ही साल की बादशाही के बाद जंगल में जा कर मर गए.

एक युवा का आगमन

  इस दफ़ा शहर में दाख़िल होने वाला नौजवान किसी दूर दराज़ के इलाक़े का लग रहा था सब लोगों ने आगे बढ़कर उसे मुबारकवाद दी और उसे बताया कि आप को इस मुल्क का बादशाह चुन लिया गया है और उसे बड़ी इज़्ज़त के साथ महल में ले गए।

वो हैरान भी हुआ और बहुत ख़ुश भी तख़्त पर बैठते ही उसने पूछा कि मुझ से पहले जो बादशाह था कहाँ गया?
तो दरबारियों ने उसे इस मुल्क़ का क़ानून बताया कि हर बादशाह को एक साल बाद जंगल में छोड़ दिया जाता है और नया बादशाह चुन लिया जाता है । ये सुनते ही वो एक दफ़ा तो परेशान हुआ लेकिन फिर उसने अपनी अक़्ल को इस्तिमाल करते हुए कहा कि मुझे उस जगह लेकर जाओ जहाँ तुम बादशाह को छोड़कर आते हो।
दरबारियों ने सिपाहियों को साथ लिया और बादशाह सलामत को वो जगह दिखाने जंगल में ले गए , बादशाह ने अच्छी तरह उस जगह का जायज़ा लिया और वापस आ गया.

राजा की दूरदर्शिता

  अगले दिन उसने सबसे पहला हुक्म ये दिया कि मेरे महल से जंगल तक एक सड़क तामीर की जाये और जंगल के बीचों बीज एक ख़ूबसूरत महल तामीर किया जाये जहां पर हर किस्म की सहूलियतें मौजूद हों और महल के इर्द गिर्द ख़ूबसूरत बाग़ लगाए जाएं।

  बादशाह के हुक्म पर अमल हुआ और तामीर शुरू हो गई , कुछ ही अर्से में सड़क और महल बनकर तैय्यार हो गए एक साल के पूरे होते ही बादशाह ने दरबारियों से कहा कि अपनी रस्म पूरी करो और मुझे वहां छोड़ आओ जहां मुझ से पहले बादशाहों को छोड़ के आते थे।

दरबारियों ने कहा कि बादशाह सलामत आज से ये रस्म ख़त्म हो गई क्योंकि हमें एक अक़लमंद बादशाह मिल गया है, वहाँ तो हम इन बेवक़ूफ बादशाहों को छोड़कर आते थे जो एक साल की बादशाही के मज़े में बाक़ी की ज़िंदगी को भूल जाते और अपने लिए कोई इंतिज़ाम ना करते, लेकिन आप ने अक़्लमंदी का मुज़ाहरा किया कि आगे का ख़ूब बंदोबस्त फ़र्मा लिया। हमें ऐसे ही अक़लमंद बादशाह की ज़रूरत थी अब आप आराम से सारी ज़िंदगी राज़ करें !!!

     अब आप लोग सोचें कि कुछ दिन बाद हमें भी ये दुनिया वाले एक ऐसी जगह छोड़ आयेंगे जिसे कब्रिस्तान कहते हैं, और कोई नही जानता कि कब किसकी बारी है, तो क्या हमने अक़लमंदी का मुज़ाहरा करते हुए वहां अपना महल और बाग़ात तैय्यार कर लिए हैं? या बेवक़ूफ़ बन कर उसी चंद रोज़ा ज़िंदगी की मज़ों में लगे हुए हैं और एक बहुत लंबी हमेशा-हमेश की ज़िंदगी बर्बाद कर रहे है।

ज़रा सोचिए कि फिर पछताने की मोहलत नहीं मिलेगी…….
अल्लाह दूनियाँ के तमाम मुसलमानों को अपनी अनमोल ज़िन्दगी का मकसद समझने और वक़्त की क़दर करने की तौफ़ीक़ अता फरमाये। आमीन

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