Mahboob
Mahboob ko Qasam Ki Zarurat Nahin : Peer Zulfiqar Ahmad Naqshbandi Sahab
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मेहबूब को क़सम खाने की क्या ज़रूरत है?
एक सहाबी बकरियां चराते थे, जब मदीना वापस आते तो पूछते : क़ुरान की कोई नई आयत उत्तरी? या क्या पैगंबर (स. अ. स.) ने कुछ विशेष इरशाद फ़रमाया? उन्हें बता दिया जाता,
एक बार वापस आ कर पूछा तो उन्हें बताया गया कि ये आयत जिस मे अल्लाह त’आला ने कसम खा कर फ़रमाया के मेरे बन्दों! में ही तुम्हें रिज़्क़ (आजीविका) देने वाला हूँ. जब यह सुना तो वे नाराज़ हो गए और कहने लगे “वो कौन है जिसे यक़ीन दिलाने के लिए मेरे अल्लाह को क़सम खानी पड़ी?” सुब्हान-अल्लाह, यह मुहब्बत की बात है।
तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ
मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
(अहल ए दिल के तड़पा देने वाले वाक़िआत – मुहब्बत ए इलाही 20-21)
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One Reply to “Mahboob ko Qasam Ki Zarurat Nahin : पीर ज़ुल्फ़िक़ार साहब नक्शबंदी (दा. ब.)”